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The Hope Experiment:
यह कहानी हमे जीवन में आशा (उम्मीद) के महत्व को बताती है |
1950 के दशक में, एक प्रोफेसर जॉन्स हॉपकिन्स ने एक प्रसिद्ध डूबते हुए चूहों के मनोविज्ञान पर प्रयोग किया। इस प्रयोग ने बताया कि जीवन में कठिन से कठिन परिस्थितियों पर भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए |
उसके बाद उसने कुछ और चूहों पर यही प्रयोग किया गया और उनमे से कुछ दस मिनट तो कुछ बीस मिनट तक तैरते रहे जब तक की डूब नहीं गए |
कुछ समय पश्चात कर्ट ने अपने शोध में कुछ बदलाव किया। उसने पानी से भरी बाल्टी में एक दूसरे चूहे को डाल दिया। वह चूहा बाहर आने के लिये बहुत प्रयास करने लगा लेकिन जैसे ही उस चूहे ने प्रयास करना बन्द किया और डूबने लगा। ठीक तभी कर्ट ने उस चूहे को पानी से बाहर निकाल लिया।
कुछ समय तक उस चूहे को पानी से बाहर ही रखा लेकिन थोड़ी देर के बाद उस चूहे को कर्ट ने पुनः उसी पानी की बाल्टी में डाल दिया। पानी से भरे उस जार में दोबारा डेल जाने पर चूहे ने फिर से पानी से बाहर निकलने के लिए अपनी भरपूर कोशिश शुरू कर दी। लेकिन अब दुबारा पानी में डाले जाने के बाद अब उस चूहे हैरान कर दिया |
कर्ट ने अपने इस शोध क नाम ‘The Hope Experiment’ रखा |
जब उस चूहे को पहली बार पानी में डाला गया था तो वह कुछ ही मिनटों में डूबने की कगार पर पहुंच गया था । उसने आशा छोड़ दी थी | पर जैसे ही उसको ये पता चला कि वह बच सकता है तो दूसरी बार पानी में डाले जाने पर वह लगातार 72 घंटों तक प्रयास करता रहा | इस आशा में कि वह फिर से बच जाएगा | जिस हाथ ने उसे पानी में फेंका था वही उसे बाहर निकलेगा |
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